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( ए) सारियां जीवलीनांग्यां पच्चरकाण॥ कपटहेतु किरिया करी जी, कीधां आप वखाण रे॥
जियामि॥त्रण ढाल आठे उहें जी, आलोया अतिचार ।। शिवगति आराधन तणो जी, ए पहेलो अधिकार रे ॥जि०॥६॥
॥ ढाल चोथी॥ साहेलडीनी देशी ॥ ॥ पंच महाव्रत धादरो ॥ साहेलडी रे ॥ अथ वा व्यो व्रत बार तो ॥ यथाशक्ति व्रत श्रादरी॥ सा ॥ पालो निरतिचार तो ॥ १ ॥ व्रत सीधा संनारीयें ॥ सा० ॥ हियडे धरिय विचार तो ॥ शिवगति या राधन तणा॥ सा० ॥ ए बीजो अधिकार तो ॥ २॥ जीव सके खमावियें ॥ सा ॥ योनि चोराशी लाख तो ॥ मन शुई करो खामणां ॥ सा० ॥ कोश्गुं रो पन राख तो॥३॥ सर्व मित्र करी चिंतवो॥सा॥ को न जाणो शत्रु तो ॥ राग शेष एम परिहरो ॥ सा॥ कीजें जन्म पवित्र तो ॥ ४ ॥ सामी संघ खमावियें ॥ सा ॥ जे उपनी अप्रीति तो ॥ सज न कुटुंब करी खामगां ॥ सा० ॥ ए जिनशासन री ति तो॥ ५॥ खमियें अने खमावियें ॥ सा० ॥ एह ज धर्मनो सार तो॥ शिगवति अाराधन तणो ॥सा॥ ए त्रीजो अधिकार तो ॥ ६ ॥ मृषावाद हिंसा चो री॥ सा० ॥धन मूळ मेदुन्न तो ॥ क्रोध मान मा या तृष्णा ॥ सा० ॥ प्रेम ष पैशुन्य तो ॥ ७ ॥ निंदा कलह न किजीयें ॥ सा ॥ कूडां न दीजें आ ल तो ॥ रति अरति मिथ्या तजो ॥ सा० ॥ माया