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(६६) गल पेहेलुं बोलीएं, श्री वीर जगदाधार ॥ ५॥ म गध देशमां नयरी राजगृही, श्रेणिक नामें नरेसरू ए ॥ धणवर गोवर गाम वसे तिहां, वसुनूति विप्र मनोहरु ए॥ ६ ॥ त्रुटक ॥ मनोहरु तस मानिनो रे, प्टथिवी नामें नार ॥ इति श्रादेय , त्रण पुत्र तेहने सार ॥ ७ ॥ यज्ञकर्म तेणें यादयुं, बदु विप्र ने समुदाय ॥ तिणे समे सिहां समोसस्या, चोवीशमा जिनराय ॥ ७ ॥ नपदेश तेहनो सांजली, लीथो सं जम नार ॥ अगीयार गणधर थापीया, श्री वीरें तेणी वार ॥ए ॥ इंश्नति गुरुनक्तं थयो, महा लब्धिनो नंमार ॥ मंगल बीजु बोलीयें, श्री गौतम प्रथम गणधार ॥ १० ॥ नंद नरिंदनो पामली पुरव रें, सकमाल नामें मंत्रीसरू ए॥ 'लाबलदे तस नारी अनुपम, शीलवती बदुसुखकरू ए ॥ ११॥ त्रुटक॥ सुखकरू संतान नव दोय, पुत्र पुत्री सात ॥ शील वंतमां शिरोमणि, यूलिन जग विख्यात ॥ १२ ॥ कर्मवशे वेश्या मंदिर, वस्या वर्षज बार ॥ जोग नली पेरें जोगव्या, ते जाणे सदु संसार ॥ १३ ॥ शुभ संयम पामी विषय वामी, पामी गुरु आदेश ॥ कोश्या आवासें रह्या निश्चल, मग्या नहीं लवलेश ॥ १४ ॥ गुरू शियल पाले विषय टाले, जगमा जे नर नार ॥ मंगल त्रीजुं बोलीएं, श्री थूलिन अण गार ॥ १५ ॥ हेम मणि रूप मय घडित अनुपम, ज डित कोशीसां तेजें ऊगे ए ॥ सुरपति निर्मित त्रण