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(५ए ) वनो पास, विनति चित्त धरी॥ ७॥ सेनाराणीना नं दन देव, गुणरत्नाकरू ॥ एवो जागीरे कीधी में सेव, जयो जयो जिनवरू ॥ ॥ सोहे सोहे रे सूरत म कार, विधिपद देहरे ॥ मोहे मोहे रे बहु नर नार, देखी नयणां रे ॥ ए ॥ नामें नामें रे संनव नाथ, जिन रलियानणां ॥ पामे पामे रे सुख नित्य लान, खेडं नित्य बामणां ॥१०॥ इति संपूर्ण ॥
अथ अष्टापदगिरि स्तवनं ॥ ॥ अष्टापद अरिहंत जी, माहारा वालाजी रे ॥ आदेशर अवधार, नमीये नेहमु ॥ मारा ॥ दश हजार मुणिंदरां ॥ मारा ॥ वस्या शिव वधू सार ॥ नमी० ॥ १ ॥ जरतनूप नावें कस्या ॥ मारा ॥ चिटुं मुरव चैत्य नदार ॥ नमी० ॥ जिनवर चोवीशे जिहां ॥ मारा ॥ थाप्या अति मनोहार ॥ नमी० ॥ ॥ २ ॥ वर्ण प्रमाणे विराजता ॥ मारा ॥ सहन ने अलंकार ॥ नमी० ॥ सम नासारण शोजता ॥ ॥ मारा ॥ चिटुं दिशि चार प्रकार ॥ नमी ॥३॥ मंदोदरी रावण तिहां ॥ मारा० ॥ नाटक करतां विचाल ॥ नमी० ॥ त्रूटी तांत तिहां कणे॥मारा॥ निज कर वीणा ततकाल ॥ नमी० ॥ ४ ॥ करी व जावी तिणे समे ॥ मारा ॥ पण नवि तोडथु ते तान ॥ नमी० ॥ तीर्थकर पद बांधीयुं ॥ मारा ॥ अनुत ध्यान सुगान ॥ नमी ॥ ५॥ निज लब्धं गौ तम गुरु ॥ मारा॥ करवा आव्या ते यात्र ॥नमी॥