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ख होये मनघणा ॥ जि ॥ जिनशासन नायक त्रिशला सुत चित्त रंजणो ॥ ॥ नवियएने शिव सुख कारी जवलय नंजणो ॥ ज० ॥१२॥ कानश ।। जय वीरजिनवर संघ मुम्वकर, शुण्यो अति नत्राक री॥ संवत स्नर क्याशायें, सूरन चोमासुं करी।।श्र सहजसुंदर तणो मेवक, नति३ पणी पर क प नुजीगुंपूरण प्रेम पायो, नित्यलान वंतिल ॥१६॥
॥अथ आदिनाथस्तवनं ॥ ॥प्रथम जिगेसर प्रणमीयें, जास सुगंधीरे का कल्पवृद परें तास इंशणी जयण जे, नंग परेंलपटा य ॥१॥ रोग नरग तुज नविनडे, अमृत जे प्रावा द ॥ तेहथी प्रतिहत तेह मानुं कोई नवि करे, जगना तुमयुं वाद ॥२॥ वगर धोई तुक निर्मली, काया कं चन वान ॥ नही प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने,जे घरे ताहरु ध्यान ॥३॥ राग गयो तुझ मन यकी, तेहमां चित्त न कोई ॥ रुधिर अार्म.पी रोग गयो तुज जन्म थी, दूध सहोदर होई॥ ४ ॥ श्वासोश्वास कमजस मो, तुज लोकोत्तर वात ॥ देखे न पाहार निहार चर्म चदुधणी, एहवा तुफ अवदात ॥५॥ चार अतिशय मूलथी, उगणीश देवना कीध ॥ कर्म खप्याथी ग्यार चोत्रोश, एम अतिशय समवायंगें प्रसिद ॥ ६ ॥ जिन उत्तम गुण गावतां, गुण थावे निज अंग ॥प द्मविजय कहे एम समय प्रनु पालजो, जिम था अवय अनंग ॥॥इति यादिनाथ स्तवनं संपूर्ण॥