________________
(४३) कहे ऋषनदत्त मन धार जो ।।च॥॥नोग अरथ सुख पामा जो, तमें लेहेशो पुत्र रतन्न जो ॥ देवा नंदा ते सांजली जो, कीg मनमा तहत्ति वचन्न जो ॥ च० ॥ ५॥सांसारिक सुख जोगवे जो, सुणो अच रिज इन ति वार जो ॥ सुंधर्म इंश तिहां कणे जो, जो अवधि तणे अनुसार जो ॥च॥६॥च रम जिणेसर कपना जो, देखी हरष्यो इंइ माहाराज जो ॥ सात आठ पग साहामोज जो,एम वंदन करे शुन साज जो ॥ च ॥ ७ ॥ शकस्तव विधियुं करी तो, फरीको सिंहासन जाम जो ॥ मन विमासण मां पडयं जो, चित्त चिंतवे सुरपति ताम जो ॥च॥ ॥ ७ ॥ जिन चक्री हरि रामजी जो, अंतपंत माहण कुनें जोय जो ॥ याव्या नही नही थावगे जो, एतो उग्रनोग राजकुलं होय जो॥च० ॥ए ॥ अंतिम जि गेसर आविया जो, एतो माहणकुलमा जेण जो ॥ ए तो अनेरा जूत ने जो॥थयुं हुंमाअवसर्पिणी तेण जो ॥ च ॥ १० ॥ काल अनंत जाते थके जो, ए हवां दश अबेरां थाय जो॥ण अवसर पिणीमां थया जो, ते कहीये जे चित्त लाय जो॥ च ॥११॥ गर्न हरण उपसर्गनो जो, मूल रूपें आव्या रवि चंद जो ॥ निष्फल देशना जे थई जो, गयो सौधर्में चमरें जो ॥ च ॥ १२ ॥ ए श्री वीरनी वारमा जो, कृम अमर कंका गया जाण जो ॥ नेम नाथने वारे सही जो, स्त्री तीर्थ मन्नी गुण खाण जो ॥च०॥