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________________ जीवित पुरुषके रूपमें मानने लगते थे। लोगोंका ख्याल था कि जिस प्रकार कितने एक गृहोंमें सनीव व्यक्तियां होती हैं, उसी प्रकारसे ये शक्तियां भी सजीव हो सकती हैं। ___ परंतु ये शक्तियां स्वयं कोई नीव नहीं है, ऐसा होनेपर भी प्रारंभमें यह विचार जरूर रहा होगा, ऐसा प्रगट कर रही हैं। इन शक्तियोंके सृजन करनेवाले ( रक्षक) रक्षा करनेवाले और (नाशक ) नाश करनेवाले ऐसे तीन भेद भी किये गये हैं ऐसा जान पड़ता है और तत्पश्चात् इन्हीं तीन शक्तियोंको कुछ महत् शक्तियोंका भाग समझ करके उसका हिन्दुओंने ( ब्रह्मा विष्णु और महेश ) नाम रक्खा है ऐसा भास होता है। वास्तवमें यहां जो 'सृजन' शब्द दिया है, वह अंग्रेजीके - Emanation' शब्दका वाचक है निसका कि अर्थ 'किसी एक पदार्थ से निकला हुआ' अथवा 'उसी पदार्थका विस्तार होता है। जो जिस जिस आकारका है उसके उस उस आकारकी रक्षा करनेमें रक्षक शब्दका और उस आकार वा आकृतिके क्षयनाशक शब्दका प्रयोग किया गया है । ___ इंद्रियोंसे जड़ पदार्थक विषयमें बहुत कुछ बातें मालूम होती हैं। जड पदार्थमें जो आकर्षण, स्नेहाकर्षण, (मग्नेटीजम) विद्युत, गुरुत्वा- , कर्षण आदि शक्तियां होती हैं, वे भी जड़ ही होना चाहिये। क्योंकि जड़की शक्ति चैतन्य नहीं हो सकती है, इन शक्तियोंको ईश्वरके सदृश बनाना यह विचार तो अतिशय ही जड़वादवाला है। इसलिये ईश्वर अथवा ईश्वर सरीखा कोई पुरुष है, इस विचारको जैनी अपने पास भी नहीं फंटकने देते हैं। इतनेपर भी वे इन शक्तियोंका अस्तित्व स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि, ये शक्तियां सर्वत्र मालूम होती हैं परन्तु वे कई एक
SR No.010284
Book TitleJain Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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