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पदार्थ हैं - देह सर्वना पर है तो फिर दुःखका तो नाम भी अस्तित्वमें नहीं रहता है | यदि कभी अपना ध्यान दूसरी ओर दौड़ जाता है तो हम अपने साम्हने जो कुछ होता है, उसे भी नहीं जान सक ते हैं । इससे मालूम होता है कि, आप शरीरको अपेक्षा कुछ उच्च श्रेणीका है । तो भी साधारण रीतिमे शरीरका अमर आत्मापर होता है । इससे आत्मिक और शारीरीक नियमोंका हमें अभ्यास करना चाहिये कि जिनके अभ्यास से छोटी वस्तुओं की अपेक्षा हम बेच सके और उस मोक्ष मार्गमें आगे च कि जिले आत्मा प्राप्त करना चाहता है । अवश्य ही जड वस्तुमें भी शक्ति हैं, परन्तु वह आत्माकी अपेक्षा बहुत ही न्यून और निम्न प्रकारकी है । यदि जड़में कोई शक्ति न हो, तो उसका असर भी आत्मापर नहीं हो सकता है | क्योंकि कुछ शक्तिहीन हो तो फिर असर कौन करे ? शरीरकी शक्ति जिसका कि हम नित्तर अनुभव करते हैं, वह उस के भीतर जो आत्मा है, उसके कारण से हैं। जड़ वस्तु शक्ति है, इसके उदाहरण पहले कहे हुए संयोगी तत्व लोहा चुम्बक कौरह समझना चाहिये | ये जड़ वस्तुएं आत्मा के बिना भी सयं काम कर सकती हैं। यदि पृथ्वी के आसपास चन्द्रमा घूमता हो तो ऐसा समझना चाहिये कि चन्द्रमा और पृथ्वीमें कोई स्वाभाविक शक्ति है। ऊपर जो बहुत सी बातें कही गई हैं, उनका सार केवल इतना ही है कि इन वस्तुओं की शक्ति आत्मापर असर करती है । इसका कारण यही है कि आत्मा स्वयं उन शक्तियोंके आधीन होनेके लिये तयार रहता है और प्रसन्न होता है । यदि वह स्वयं ऐसा विश्वास करे कि, मुझपर तो किसी वस्तुका असर होना ही नहीं
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