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________________ जैन पाठावली) (५७ , अगर इन बातो पर अमल किया जाय तो जगत् में बहुतसी हिंसा कम हो सकती है । एक का दूसरे पर विश्वास बैठ मकता है और बहुत-सा वैर-विरोध भुलाया जा सकता है । वहुत से अपराध और क्लेश बन्द हो सकते हैं और आत्मा मुधर सकता है । CASACHAKK पाठ सोलहवां दूसरा अणुव्रत स्थूल मुसावाय वेरमणं मूलपाठ बीयं अणुव्वयं थूलमुसावायविरमण से य मुसावाए पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा-कन्नालीए, गवालोए, भोमालीए, नासावहारे, कूडसक्खिज्जे। इच्चेवमाइस्स महंतमुसावायस्स पच्चक्खाणोजावज्जीवाए दुविहं सिविहेणं-न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा; एअस्स थलगमसावायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियवा' न समायरियन्वाःतंजहा (१) सहसभक्खाणे (२) रहस्सभक्खाणे (३) x,सदार श्राविका को 'मभत्तारमतभेए' वोलना चाहिए। इन अतिनार के दो रूप विगेप प्रचलित है- (अ) मगारमंतभेएसाकारमपमेद और (आ) सदारमतभेए अर्थात् स्थदारमंत्रभेद ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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