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(तृतीय भाग (१) बंध-कोई प्राणी अपनी इष्ट जगह में जा रहा है तो उसे रोक देना, वाध देना या ऐसा करने में सहायता करना आदि बातो का भी इसमें समावेश होता है । तोता, चूहा, शेर या गाय आदि को वन्धन में बाध देना या मनुष्य को जेल में डालना, पति या सासू के द्वारा बहू को बाँध रखना, सेठ या ऊंचे अधिकारी द्वारा किसी मनुष्य को जकड रखना भी इसी अतिचार में सम्मिलित है।
(२) वध--पशु पक्षी या स्त्री-पुरुष आदि को मारनापीटना, चाबुक आदि से मारना, यह सब वध नामक अतिचार है।
(३) छविच्छेद -क्रूरता के साथ पशु की चमडी को या अंग को छेदना । मनुष्य के प्रति भी इस प्रकार का क्रूर बर्ताव करने से यह अतिचार लगता है।
(४) अतिभार-मनुप्य या पशु मे सामथ्र्य से ज्यादा काम लेना । उन पर शक्ति में ज्यादा बोझ लादना । नोकर से बहुत ज्यादा काम लेना । ऐसा करने से व्रत में दोप लगता है।
(५) भक्तपानविच्छेद-मनुष्य या पशु वगैरह मिनी भी जीव के माने-पीने में अतराय डालना । अपने आश्रित पमु आदि को समय पर मोजन पानी न देना। अहिपक का कर्तव्य :
अहिमायत लेने वाले को अत की रक्षा करने के लिए नीने लिये कर्तव्य ध्यान में उसने चाहिए :