SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६) 1 } ( जैन पाठावली राग-माढ 1 जयवता प्रभु वीर, हमारा जयवन्ता प्रभु वीर, शासन-नायक धीर, हमारा जयवन्ता प्रभु वीर । शास्त्र - सरोवर सरस आपका तत्त्व-सुधा भरपूर, नित्य नहाते तरते उसमे होवे कल्मष दूर || हमारा ० ॥ सात्विकता से उद् गम जिसका, वास्तविक तत्त्वस्वरूप, आस्तिकता मे रमिये उससे हो, आनद अनूप ॥ हमारा ० आप प्रकाशित ज्ञान-बगीचे, खिले सुरभिमय फूल, सरस सुगधित वायु-लहर में, हैं हम सब मांगूल | हमारा ० ॥ नाम आपका निशिदिन प्यारा, भविजन जीवन-मूर, उसके लिए प्राणधन देने, हम सदैव मजूर | हमारा ० ॥ मार्ग बताकर मेरे ऊपर, किया महा उपकार, ' अर्पण करे समस्त तथापि, होय न प्रत्युपकार || हमारा ० ॥ चरण आपके शरण हमारे, मरण - जन्मभय दूर, लोभी चातक रत्न- चन्द्र, सम तव दर्शन आतूर || हमारा ० ॥ ( मूल लेखक शता मुनि रत्नचन्द्रजी म. ) 1000 (४) प्रभु महावीर
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy