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________________ जैन पाठावली सूरदास ने कहा- इस सूरदास को पैसे की भूख नही है। फिर भी अगर, तुम्हे देना ही है तो माँगता हूँ । मुझे 'काकिणी' चाहिए।' मुरदास की इस मांग को सुनकर मत्रीगण चकित रह गये । उल्लास के वातावरण में सहसा उदासी व्याप्त हो गई। काकिणी अर्थात अशोक का साम्राज्य । जैसे विश्वामित्र ऋषि ने गाजा हरिश्चन्द्र की परीक्षा की थी वैसी ही यह परीक्षा तो नही है ? सभी लोग चिन्ता मे निमग्न हो गये। • अव भेद खुल गया था। यह सूरदास और कोई नहीं, सम्राट अशोक का ही पुत्र कुणाल था । सोलहवे वर्ष में वह अधा हो गया था उसने संगीत की विद्या प्राप्त की थी । प्रभु फे भजन में चित्त लगा दिया था। अशोक के दो पुत्र थे। एक कुणाल, दूसरा महेन्द्र । महेन्द्र ने दीक्षा ले ली थी । इमलिए अगोक को चिता बनी रहती थी कि गद्दी पर किसे विठलाया जाय ? अव पता चला कि यह सूरदास मेरा ही पुत्र है । और उसने पुत्र सम्प्रति के लिए ही गज्य की मांग की है । अगोक का मनचाहा हुआ। मेरे लड़के का लडका गद्दी पर बैठेगा, यह जानकर अशोक के हर्ष का पार न रहा । अशोक ने नगर में घोषणा करके सप्रति को गद्दी पर विठलाया। अशोक मगधराज श्रेणिक के समान राजा था । पश्चिम
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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