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( जैन पाठावली
प्रकार अपना और जगत् का कल्याण करते-करते, शुद्ध ध्यान करते हुए उन्हे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । अन्त में निर्वाण प्राप्त हुआ।
जैन ग्रथो का कथन है कि सब से अन्त मे जम्बूस्वामी को ही केवलज्ञान प्राप्त हआ। उनके बाद फिर कोई केवली नही हुआ।
राज्य सरीखी ऋद्धि के त्यागी जम्बस्वामी धन्य हैं ।
अप्सरा सरीखी मुन्दरियो से विचलित न होनेवाले धन्य हैं ।
प्रभव जैसे महान चोर को बोध देने वाले धन्य हैं | धर्मध्यान में मग्न होकर केवलज्ञान पानेवाले धन्य हैं । ऐसे सच्चे त्यागी ही जनशासन को सुशोभित करते हैं ।
सम्राट् सम्प्रति
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नृप अशोक के पौत्र वह, नृपति कुगाल - कुमार, सार्वभौम राजा हुए, सप्रति अति सुखकार । माता के उपदेश से, पाया धौल्लास, आर्य हम्ति की शरण में , पर. हितकिया प्रकाग ॥
पाटलीपुत्र में एक सूरदास आया है । वह ऐसे भजन ललकारता है कि सुनकर आत्मा जाग उठती है । सारा पाटली