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जैन पाठावली )
मूल पाठ
इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं, जो मे देवसिओ अइयारो कओ, काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुविचितिओ, अणायारो अणिच्छियव्वो, असावगपाउग्गो, नाणे तह दंसणे, चरित्ताचरिते, सुए, सामाइए, तिन्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं पंचण्हमणुव्वयाणं, तिन्हं गुणव्वयाणं, चउण्हं सिक्खावयाणं वारस विहस्स सावगधम्मस्स जं खंडियं, जं विराहिअं तस्स मिच्छामि दुक्कडं |
मूल
अर्थ
इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं कायोत्सर्ग मे स्थिर होने की
जो मे देवसिओ
अइयारो कओ --
काइओ-वाइओ-
माणसिओ-
उस्सुतो-उम्मग्गो-
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इच्छा करता हूँ
मैने दिन सम्बन्धी जो अतिचार (सेवन) किया हो काया सबधी ( अविनय करना आदि )
वचन सबधी ( असत्य बोलना, अप
शब्द वोलना )
मन सम्बन्धी ( क्रोध करना, बुरी इच्छा करना आदि )
सूत्र से विरुद्ध वर्ताव किया हो गलत मार्ग अस्तियार किया हो