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________________ जैन पाठावली) (१४१ । अकेली छोडकर जाने को क्रूरता करना क्या उचित है ? नही, ऐसा नही हो सकता। ___ मगर नल की यह दया देर तक नहीं टिकी । नल उठता है । धूल में कुछ लिखता है और दमयन्ती को पता न चले, इस प्रकार चुपके से चल देता है। नल तत्काल दूर और बहुत दूर निकल जाता है । सती दमयन्ती इधर सती दमयन्ती सपना देखती है। सपने में वह डर जाती है । वह चौंक कर कुछ बोलती है, मगर अब सुनने वाला कौन था ? पतिदेव तो नौ दो ग्यारह हो चुके थे । उत्तर न पाकर दमयन्ती 'पतिदेव' 'पतिदेव' कहकर हाथो से टटोलती है। मगर पति कहाँ ? निवटने गये होगे, यह सोचकर वह अन्धेरी रातमे आवाज देती है। उत्तर में बाघ की चीसकी ध्वनि सुनाई देती है। नाथ | इतने कठोर कैसे हो गये ? हंसी करते होओ तो बस करो। बोलो कहाँ हो ? इस प्रकार वडबडाती हुई दमयन्ती न रात पूरी की । प्रभात हुआ । आसपास में बहुत खोजा । मगर नल वहाँ होते तो मिलते । आह । पुरुषो की कठोरताके ? कारण सती स्त्रियो पर कैसी बीतती है ? दमयन्ती रोती-रोती थक गई । वह परमात्मा का स्मरण __करने लगी। तब उसके मन को कुछ शान्ति मिली। अचानक
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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