SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६) ( जैन पाठावली झूठा कलक । फिर भी मुला सेठानी पर उसे तनिक भी रोष नही, जरा भी द्वेष नही । ऐसी चन्दना को लाखो धन्यवाद ! धनावाह सेठ बाहर गाँव से लौटकर आये । बहुत ढूंढखोज करने पर चन्दना का पता चल गया । उसकी दशा देखकर सेठ की आँखो से आसुओ की धारा बह निकली । } 4 + यह सब मूला सेठानी की करतूत है, यह जानकर सेठ के क्रोध का पार न रहा । चन्दना कहने लगी- 'पिताजी / दोष माताजी का नही है । उनका तो बहुत उपकार है । दोष मेरे कर्मों का है । आप माताजी को कुछ न कहे !' सेठ वोले- 'धन्य है बेटी । पर तेरे लिए खाने को तो ले आऊँ ।' सेठजी खाना लेने दौडे । पर उन्हे ढोरो के लिये तैयार किये हुए और सूप में रक्खे हुए उडद के बाकले के सिवाय कुछ मिला नही । सेठ सूप उठाकर लाये और चन्दना के पास रख दिया। इसके बाद बेडियाँ काटने के लिये वे लुहार को बुलाने दौडे | चन्दना का एक पैर देहली पर है और दूसरा बाहर है। बेटी बैठी वह सोचती है कि ऐसे समय पर कोई अतिथि सन आ जाएँ तो कितना अच्छा हो । चन्दना इस दुख में और ऐसी' भूख मे भी अतिथि सत को नही भूलीं । इतने में ही एक सत उस ओर पधारे। उन्होने निश्चय किया है कि- ' कोई सती और राजकुमारी दासी की तरह रही
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy