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तृतीय भाग)
शरीर मजबूत होना चाहिये । मजबूत बने बिना इस मार्ग र नही जाया जा सकता है ।
__ शुक्लध्यान होना आवश्यक है, इसके बिना आत्म-रमणता रूप याने स्थितप्रज्ञता उच्च विकास की प्राप्ति नही हो सकती है। धर्म-ध्यान की आराधना करते हुए शुक्लध्यान की प्राप्ति होती है और इसके द्वारा उच्चकोटि पर पहुच जाता है, एव तत्पश्चात् मुक्तावस्था प्राप्त होती है।
क्षायिक सम्यक्त्व होना आवश्यक है। इस सबध मे विशेष वर्णन गुणस्थान-प्रकरण में किया जायगा । चारित्र निर्दोप होना चाहिए अर्थात् आत्मा अपने मूलस्वभाव मे रमण करती रहनी चाहिये । वर्ण-आतरिक और बाह्यरूप से उज्ज्वल होना चाहिये। मनुष्य में भी कर्मक्षेत्र की भूमि का मनुष्य होना चाहिये । ऐसा मनुण्य ही नवतत्त्वो का ज्ञाता होकर आदरणीय का आदर करे और त्यागने योग्य का त्याग करे, तभी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।