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________________ पच्छाकम्म वाआ सहा ६६] जैन परम्परा का इतिहास पच्छेकम्म वग्गू पाय ( पाल) पत्त वाहणा ( उपानह) उवाणा पुठो (पृथक ) पुहं, पिह सहेज्ज पुरेकम्म पुराकम्म सीआण, सुसाण मसाण पुचि पुन्वं सुमिण सिमिण माय ( माल) अत्त, मेत्त सुहम, सुहुम सह माहण बम्हण सोहि सुद्धि मिलक्खु, मेच्छ मिलिच्छ ओर दुबालस, बारस, तेरस, अउण्बीसइ, बत्तीम, पणत्तीस, इगयाल, तेयालीस, पणयाल, अठयाल, एगट्ठि, वावट्ठि, तेवट्ठि, छात्रवि, अढसट्ठि, अउगत्तरि, बावत्तरि, पण्णत्तरि, सत्तहत्तरि, तेयासी, छलसीइ, बाणउइ प्रभृति संख्या-शब्दो के रूप अर्धमागधी मे मिलते है, महाराष्ट्री मे वैसे नही। नाम-विभक्ति १-अर्धमागधी मे पुल्लिंग अकारान्त शब्द के प्रथमा के एक वचन मे प्राय सर्वत्र 'ए' और क्वचित्'ओ' होता है, किन्तु महाराष्ट्री मे 'ओ' ही होता है । २-सप्तमी का एक वचन 'वि' होता है जब महाराष्ट्री मे 'म्मि' । ३-चतुर्थी के एक वचन में 'आए' या 'आते' होता है, जैसे देवाए, सवणयाए, गमणाए, अट्ठाए, अहिताते, असुभाते, अखभाते (ठा० पत्र ३५८ ) इत्यादि, महाराष्ट्री मे यह नहीं है। ४- अनेक शब्दो के तृतीया के एक वचन मे सा' होता है, यया-मगसा, वयमा, कायसा, जोगसा, वलसा, चक्खुमा, महाराष्ट्री मे इनके स्थान मे क्रमश मणेग, वएण, काएण, जोगेण वलेण, चक्खुणा। ५- 'कम्म' और 'धम्म' शब्द के तृतीया के एक वचन में पाली की तरह 'कम्मुणा' और 'धम्मुणा' होता है, जबकि महाराष्ट्री मे 'कम्मे ग' और 'धम्मेण' । ६-अर्धमागधी मे 'तत्' शब्द के पचमी के बहुवचन मे 'तेब्भो' रूप भी देखा जाता है।
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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