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________________ जैन परम्परा का इतिहास [ ४e वह अरस-जीवी यावत् तुच्छ जीवी था । उपशान्त सुखा आहार करता था । जीवी, प्रशान्त-जीवी और विविक्त-जीवी था 1 ) भगवान् - हाँ गौतम | वह ऐसा था । 1 गौतम - तो फिर भगवन् । वह किल्विपिक देव क्यों बना ? भगवान् - गौतम । जमाली अणगार आचार्य और उपाध्याय का प्रत्यनीक था । उनका यश वखानता, अवर्ण बोलता और अकीर्ति गाता था । एकान्तआग्ग्रह का प्रचार करता और लोगो को मिथ्याभिमानी बनाता था । इसलिए वह साधुपन का आराधक नहीं बना । जीवन की अन्तिम घड़ियो मे भी उसने मिथ्या स्वान का आलोचन और प्रायश्चित नही किया । यही हेतु हे गौतम ! वह तपस्वी और वैरागी होते हुए भी किल्विपिक देव बना । सलेखना और अनान भी उसे आराधक नहीं बना सके । गौतम - भगवान् । जमाली देवलोक से लौट कर कहाँ उत्पन्न होगा ? भगवान् गौतम । जमाली देव, अनेक बार तियंच, मनुष्य और देव -गति मै जन्म लेगा । ससार-भ्रमण करेगा । दीर्घकाल के बाद साधुपन ले, कर्म खपा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा | जीव प्रादेशिकवाद (२) दूसरे निह्नव का नाम तिप्यगुप्त है । इनके आचार्य वस्तु चतुर्दशपूर्वी I थे । वे तिप्यगुप्त को आत्म-प्रवाद- पूर्व पढा रहे थे । उसमे भगवान् महावीर और गौतम का सम्वाद आया । गौतम ने पूछा - भगवान् । वया जीव के एक प्रदेश को जीव कहा जा सकता है ? भगवान् — नही । 1 गौतम - भगवान् | क्या दो, तीन यावत् सख्यात प्रदेश से कम जीव के प्रदेशो को जीव कहा जा सकता है ? भगवान् - नहीं । असस्यात प्रदेशमय चैतन्य पदार्थ को ही जीव कहा जा सकता है । / यह सुन तिष्यगुप्त ने कहा - अन्तिम प्रदेश के बिना शेष प्रदेश जीव नही है | इसलिए अन्तिम प्रदेश ही जीव है । गुरु के समझाने पर भी अपना आग्रह नही छोडा । तव उन्हें सघ से पृथक कर दिया। ये जीव- प्रदेश सम्बन्धी आग्रह के कारण जीव- प्रादेशिक कहलाए ।
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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