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जैन परम्परा का इतिहास तो उसमें का पृथ्वी-धातु पृथ्वी में, आपो धातु पानी मे, तेजो धातु तेज में तथा वायु धातु वायु में मिल जाता है और इन्द्रियां सब आकाश में मिल जाती है । मरे हुए मनुष्य को चार आदमी अरथी पर सुलाकर उसका गुणगान करते हुए ले जाते है। वहाँ उसको अस्थि सफेद हो जाती है और आहुति जल जाती है । दान का पागलपन मुों ने उत्पन्न किया है। जो आस्तिकवाद कहते है, वे झूठ भाषण करते है । व्यर्थ ही बड़बड़ करते है । अक्लमन्द और मूर्ख दोनो ही का मृत्यु के बाद उच्छेद हो जाता है । मृत्यु के बाद कुछ भी अवशेष नहीं रहता।" केस कवली के इस मत को उच्छेदवाद कहते है।
-भा० स० अ० पृ० ४५-४६ ६-१।१२।४-८ ७–णाइच्चो उएइ ण अत्थमेति, ण चदिमा बढ्दति हायती वा । सलिला ण सदति ण वति वाया, वझो गियतो कसिणे हु लोए ॥
-सू० १।१२।७ ८-चौथे सव का आचार्य पकुधकात्यायन था। उसका कहना था कि "सातो पदार्थ न किमी ने किये न करवाये। वे वेध्य, कूटस्थ तथा खबे के समान अचल है । वे हिलते नही, बदलते नही, आपस में कष्टदायक नही होते ।
और एक दूसरे को सुख दुख देने में असमर्थ है । पृथ्वी, आप, तेज, वायु, सुख दु ख तथा जीव-ये ही सात पदार्थ है। इनमे मारनेवाला, मार-खानेवाला, सुननेवाला, कहनेवाला, जाननेवाला, जनानेवाला कोई नही । जो तेज शस्त्रो से दूसरे का सिर काटता है वह खून नही करता सिर्फ उसका शस्त्र इन सात पदार्थो के अवकाश (रिक्तस्थान ) मे घुसता है, इतना ही ।" इस मत को अन्योन्यवाद कहते है।
-भा० स० अ० पृ० ४६-४७ बन्ध्य और कुटस्य शब्द अधिक ध्यान देने योग्य है। "वज्झा कट्टा" -दी०२ ६-अण्णाणिया ता कुसला वि संता, असंथुया णो वितिगिच्छतिन्ना । अकोविया आहु अकोवियेहिं, अगाणुवीइतु मुसं वयति ॥
-सू० १।१२।२ १.-छठे बड़े सव का आचार्य सजय वेलट्ठ पुत्र था। वह कहता था