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________________ भगवान महावीर के समकालीन धर्म-सम्प्रदाय भगवान महावीर का युग धार्मिक मतवादी और कर्मकाण्डो से सकुल था। वौद्ध साहित्य के अनुसार उस समय तिरेसठ श्रमण-सम्प्रदाय विद्यमान थे। जैन-साहित्य में तीन सौ तिरेसठ धर्म-मतवादो का उल्लेख मिलता है। यह भेदोपभेद की विस्तृत चर्चा है । सक्षेप मे सारे सम्प्रदाय चार वर्णो मे समाते थे। भगवान् ने उन्हें चार समवसरण कहा है। वे है - (१) क्रियावाद (२) अक्रियावाद (३) विनयवाद ( ४ ) अज्ञानवाद। बौद्ध साहित्य भी सक्षिप्त इष्टि से छह श्रमण-सम्प्रदायो का उल्लेख करता है । उनके मतवाद ये है : (१) अक्रियावाद (२) नियतिवाद ( ३ ) उच्छेदवाद (४) अन्योन्यवाद (५) चातुर्याम सवरवाद (६) विक्षेपवाद । और इनके आचार्य क्रमश ये है : (१) पूरण कश्यप ( २ ) मक्खलिगोशाल ( ३ ) अजित केश कवलि (४) पकुघकात्यायन (५) निर्गन्य ज्ञात पुत्र (६) सजयवेलट्ठिपुत्र । अक्रियावाद और उच्छेदवाद-ये दोनो लगभग समान है। इन्हें अनात्मवादी या नास्तिक कहा जा सकता है। दगाश्रुत स्कन्ध (छठी दशा ) में अक्रियावाद का वर्णन इस प्रकार है - नास्तिकवादी, नास्तिक प्रज्ञ नास्तिक दृष्टि, नो सम्यग्वादी, नो नित्यवादी-उच्छेदवादी, नो परलोकवादी-ये अक्रियावादी हैं। इनके अनुसार इहलोक नही है, परलोक नही है, माता नहीं है, पिता नही है, अरिहन्त नही है, चक्रवर्ती नहीं है, बलदेव नही है, वासुदेव नही है, नरक नही है, नैरयिक नही है, सुकृत और दुष्कृत के फल में अन्तर नहीं है, सुचीर्ण कर्म का अच्छा फल नहीं होता, दुश्चीर्ण कर्म का बुरा फल नहीं होता, कल्याण और पाप अफल है, पुनर्जन्म नही है, मोश नही है । सूत्र कृतांग ने अक्रियावाद के कई मतवादो का वर्णन है। वहाँ अनात्मवाद,
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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