________________
जैन परम्परा का इतिहास
[ ११३
गए । अन्य तीर्थिक सन्यासी भी भगवान् की परिषद् मे आने लगे । अम्बड, स्कन्दक, पुद्गल १५ और शिव १६ आदि परिव्राजक भगवान् के पास आए, प्रश्न किए और समाचान पा भगवान् के शिष्य बन गए ।
कालोदायी आदि अन्य यूथिको के प्रसग भगवान् के तत्त्व- ज्ञान की व्यापक चर्चा पर प्रकाश डालते है ' १७ | भगवान् का तत्त्व-ज्ञान वहुत सूक्ष्म था । वह युग भी धर्म-जिज्ञासुओ से भरा हुआ था । सोमिल ब्राह्मण, १८ के श्रमणोपासक, ९ जयन्ती श्राविका, २० " रोह, पिंगल माकन्दी, श्रमणो के प्रश्न तत्त्व-ज्ञान की बहती धारा के स्वच्छ प्रतीक है ।
बिम्बसार श्रेणिक
भगवान् जीवित धर्म थे । उनका सयम अनुत्तर था । वह उनके शिष्यो को भी सयममूर्ति बनाए हुए था। महानिर्ग्रन्य अनाथ के अनुत्तर सयम को देखकर मगध सम्राट् विम्बसार - श्रेणिक भगवान् का उपासक वन गया । वह जीवन के पूर्व काल में बुद्ध का उपासक था। उसको पटारानी चेलणा महावीर की उपासिका थी । उसने सम्राट् को जैन बनाने के अनेक प्रयत्न किये । सम्राट् ने उसे बौद्ध बनाने के प्रयत्न किये । पर कोई भी किसी ओर नही झुका । सम्राट् ने महानिर्ग्रन्य अनाथ को ध्यान-लीन देखा । उनके निकट गए । वार्तालाप हुआ । अन्त में जैन वन गए 3 1
I
है
चेटक
כ
इसके पश्चात् श्रेणिक का जैन प्रवचन के साथ घनिष्ट सम्पर्क रहा । सम्राट् पुत्र और महामन्त्री अभयकुमार जैन थे । जैन परम्परा में आज भी अभयकुमार की बुद्धि का वरदान मांगा जाता है। जैन साहित्य मे अभयकुमार सम्बन्धी अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है २४ ।
७ 1
१४
या नग
P
श्रेणिक की २३ रानियां भगवान् के पास प्रव्रजित हुई २५ । उसके अनेक पुत्र भगवान् के शिष्य वने २६ । सम्राट् श्रेणिक के अनेक प्रसंग आगमो मे उल्लिखित
वैशाली १८ देशो
वे भगवान् महावीर के
आदि
का गणराज्य था । उसके प्रमुख महाराजा चेटक थे । मामा थे । जैन श्रावकों में उनका प्रमुख स्थान था ।