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________________ जैन परम्परा का इतिहास ९७ महर्पियो ने इस भाषा मे लिखा। विशेष जानकारी के लिए 'जैन गुर्जर कविओ' देखिए । राजस्थानी साहित्य राजस्थानी मे जन-साहित्य विशाल हे। इस सहस्राब्दी मे राजस्थान जैनमुनियो का प्रमुख विहार-स्थल रहा है। यति, सविन, स्थानकवासी और तेरापन्य सभी ने राजस्थानी मे लिखा है। रास और चरित्रो की संख्या प्रचुर है। पूज्य जयमलजी का प्रदेशी राजा का चरित बहुत ही रोचक है। कवि समय सुन्दरजी की रचनाओ का संग्रह अगरचन्दजी नाहटा ने अभी प्रकागित किया है। फुटकल ढालो का संकलन किया जाए तो इतिहास को कई नई झांकियां मिल सकती है। राजस्थानी भापाओ का मोत प्राकृत और अपभ्र श है। काल-परिवर्तन के साथ-साथ दूसरी भापाओ का भी सम्मिश्रण हुआ है। राजस्थानी साहित्य तीन शैलियो मे लिखा गया है-(१) जैन शैली (२) चारणी शैली (३) लोकिक शैली। जैन शैली के लेखक जैन-साधु और यति अथवा उनसे सम्बन्ध रखने वाले लोग है। इस शैली में प्राचीनता की झलक मिलती है। अनेक प्राचीन शब्द और मुहावरे इसमे आगे तक चले आये है। जैनो का सम्बन्ध गुजरात के साथ विशेप रहा है। अत: जैन शैली मे गुजराती का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता हे । चारणी गली के लेखक प्रधानतया चारण और गौण रूप मे अन्यान्य लोग है (जैनो, ब्राह्मणो, राजपूतो, भाटो आदि ने भी इस शैली में रचना की है। इसमे भी प्राचीनता की पुट मिलती हे पर वह जैन शैली से भिन्न प्रकार को है, यद्यपि जैनों को अपनश रचनाओ मे भी, विशेप कर युद्ध-वर्णन मै, उसका मूल देखा जा सकता है। 'डिंगल वस्तुत: अपभ्रंश शैलो का ही विकसित रूप है ७१ तेरापन्य के आचार्य भिक्षु ने राजस्थानी-साहित्य में एक नया स्रोत वहाया । अध्यात्म, अनुशासन, ब्रह्मचर्य, धार्मिक-समीक्षा, रूपक, लोक-कथा और अपनी अनुभूतियो से उसे व्यापकता की ओर ले चले। उन्होने गद्य भी वहुत लिखा । उनकी सारी रचनाओ का प्रमाण ३८ हजार श्लोक के लगभग है। मारवाडी के ठेठ गन्दो मे लिखना और मनोवैज्ञानिक विश्लेपण करना
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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