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विका ततः कुर्यात्स्वस्तिकं टिलान्वितन् । पूर्वापररितो रम्यं तल पुम्बकापन् ॥
-सोमसेन ११० (बंदी के अग्रभाग में चौकान चबूतरे का आकार बनाकर उस पर स्वस्तिक चिह्न अंकित करें। पूर्व दिशा में एक और पश्चिम दिशा में दूसरा ऐसे दो चावलों के पुत्र (डेर) गमा।) स्वस्तिक द्वारा जीव-गतियों का निरूपण
म्वम्निक बिह्न के द्वारा जीव के चार विभाग एवं गतियों का निरूपण किया गया है । निम्नांकित चित्र में यह बात भली भांति ममनी जा मकदी है
मनुष्य
तिथंच
नारकी
बीब की बार पिया-नारकी, तिर्यञ्च, मनप्य और देवता। जिनकी आमुरी दति है और नरकों में वास करते हैं, वे नारकी हैं। पशु. पक्षी या कीट-पतंगादि के रूप में जन्म लेने वाले तियंञ्च है; नर देही मनुष्य हैं तथा मूक्ष्म शरीरी देवता है। तीन बिमुतिरल के प्रतीक-'सम्यग्दर्शनशानचारिवाणि मोक्षमार्ग: ।'
-आचार्य उमाम्बामी-जातामूव ११ विरत्न के ऊपर अर्धचन्द्र-जीव के मोन या निर्वाण की कल्पना। जीव स्वर्ग, मत्यं एवं पाताल लोक सर्वत्र व्याप्त है । नारकी जीव धर्म से देवता बन सकता है, विरत्न को धारणकर मोम प्राप्त कर सकता है।
स्वस्तिक का चिह्न 'मोहन-जो-दड़ों के उत्खनन में भी अनेक मुहरों पर प्राप्त हमा है। विद्वानों का मत है कि पांच हजार वर्ष पूर्व की सिन्धु सभ्यता में स्वस्तिक-पूजा प्रचलित थी।