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________________ अपरिग्रहवाद थाने स्वामित्व का विसर्जन मनायें कैसे प्राज महादीर शान्ति क्रान्ति कर धीर । ध्रुव० भगवान् महावीर वर्तमान जैन गासन के नायक हैं । यद्यपि २३ तीर्थदर महावीर से पहले हो चुके हैं और महावीर २४ वे तीर्थङ्कर थे। फिर उन २३ तीर्थरो का देश-काल पृथक् था। अाज जो उपदेश प्रसारित व जैन शासन चल रहा है, वह भगवान् महावीर द्वारा आदेशित कहलाता है। यह भी सही है कि अन्य तीर्थर व भगवान् महावीर के उपदेशो मे कोई प्राधारगत भेद नहीं है किन्तु फिर भी देश-काल की परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार सचेल-अचेल, चार महाव्रत-पाँच महाव्रत प्रादि मे अन्तर पाया। समयानुसार भगवान् महावीर ने उन पर नवीन प्रकाश भी डाला, जिनमे में प्राज अपरिग्रहवाद पर प्रापको जैन दृष्टिकोण समझाना चाहता हूं। वैसे प्राज महावीर जयन्ती मना रहे हैं और श्वेताम्बर दिगम्बर की सरप्रदायिक दीदारे तोड कर सोचा जाय तो सभी महावीर के समान उपासका है। यह प्राज जो सामूहिक कार्यत्रम बनाया गया है उसे मैं जागृत ही वाहूंगा। जयन्ती समारोह तो अच्छा है किन्तु इस अवसर पर दो वातें आप लोग सोचे । पहली तो यह कि महावीर ने किन प्रमुख सिद्धान्तो को प्रतिपादित विया घोर उनका सत्य स्वरूप क्या है ? यह अध्ययन, उपदेश धवरण व पटनपाठन का विषय है । जिस मोर मापकी प्रवृत्ति नजग होनी चाहिए ताकि पहले तो माप रदय अपने सिद्धान्तो का ममं समझ सकें और ग्राप उन्हें सग ग वर दूसरों को भी समझावें । विदोप प्रचार के प्रभाव मे अच्छे शिक्षित संग में भी जन-धर्म के प्रति नई ब्रान्त धारणाएं है। उसे कोई कहते है कि ऊन तो वैदिक धर्म की एक सामान है किन्तु यह गलत है .
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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