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महावीर की सर्वोच्च स्वाधीनता
और वागी जब तक कर्म में पन्गित नही हो सके, वे अपने आप में प्रभावमाली नही होते । युवको को यह सोचना चाहिए कि वर्तमान परिस्थितियो में वे समाज की गतिशीलता में क्या और किस प्रकार योग दे सकते है कि सर्वोच्च स्वाधीनता की ओर हमारे कदम बढ़ते चले जाएँ ?
ग्राज मै राष्ट्र के विभिन्न राजनीतिक दलो की कार्यप्रणाली पर भी दृप्रिपात करता हूं तो उसमे वागविलास ही दिखाई देता है । वजाय इसके कि उनकी कार्यप्रणाली मे नवनिर्माण की रचनात्मक प्रवृत्ति दिग्वाई दे । भारत के एक चिन्तनगील कवि जगन्नाथ ने जो यह अन्योक्ति कही है, उससे रोमा प्रतिभास होना है कि वह सभवत वर्तमान परिस्थिति को हो इगित करके वही गई हो
पुरा सरासि मानसे विकचसार सालिस्खलपराग मुरभिकृते यस्य यात यय' । म पलवल जलेऽधनालिलदनेक भेकाकुले, मरालकुल नायक कथय रे कथ वर्तताम् ।
~~भामिनीविलास प्रर्थान् कमलो से प्रान्छादित, भरते हुए पगग मे सुगन्धित एव मधु ने भी मधुर मानसरोवर के शीदल जन और चमकते हुए बहुमूल्य मुक्ता का पान वरना हुअा मुन्दर-मुन्दर कमलो पर क्रीडा करके अपना जीवनयापन वग्ने वाले गजहस को ऐसी छोटी-सी तलैया पर बैठा देखे, जिस तलंया में पानी तो थोडा हो और मेढक अधिक हो, जो राजहम के अन्दर चोच टालने ही पुदव-पुदककर पानी को गदला बना डालते हो और राजहम दो पानी पीने मे दचित रख देते हो नोहेमी दुखावस्था को देखकर ववि हदय बोल उठना है वि हे माननगेवर के आदिवामी राजहम, तुम्हारी यह दुखद दशा की।
रन्धुनो जरा ध्यान से भारत के गौरवपूर्ण अतीत पर नजर डालिए कि वह हमेगा मानमरोवर पर रहा है और यहाँ ऋषभ, शान्तिनाथ, राम, कृष्णा, महा- ।