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जैन पूजांजलि
सम्यक दर्शन ज्ञान चरित रत्नत्रय अपना लो।
अप्टम वसुधा पंचम गति में सिद्ध स्वपद पा लो॥ द्रव्य भाव पूजन करके मैं प्रात्म चितवन मनन करू। नित्य भावना द्वादश भाऊँ रागद्वेष का हनन करूं॥ तुव पूजन से पुण्यसातिशय हो भव भव तुमको पाऊँ। जब तक मुक्ति स्वपद ना पाऊँ तब तक चरणों में पाऊँ। संबर और निर्जरा द्वारा पाप पुण्य सब नाश करूं । प्रभु नव केवल लब्धि रमा पा आठों कर्म विनाश करूं। तुम प्रसाद से मोक्ष लक्ष्मी पाऊँ निज कल्याण करू । सादि अनंत सिद्ध पद पाऊँ परम शुद्ध निर्वाण वरू॥ ॐ ह्रीं श्री पदमप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ गर्भ जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष पंच
कल्याण प्राप्ताये पूर्य्यिम निर्वपामीति स्वाहा । कमल चिन्ह शोभित चरण, पद्मनाथ उरधार । मन वच तन जो पूजते, वे होते भव पार ।।
४ इत्यार्शीवाद: ४ जाप्य ॐ ह्रीं श्री पदमप्रभ जिनेन्द्रायनमः नि० स्वाहा।
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श्री चंद्र प्रम जिन पूजन महासेन नपनंद चंद्रप्रभ चंद्रनाथ जिनवर स्वामी । मान लक्ष्मणा के प्रियनंदन जग उद्धारक प्रभु नामी । निज आत्मानुभूति से पाई मोक्ष लक्ष्मी सुखधामी ॥ वीतराग सर्वज्ञ हितैषी करुणामय शिव पुरगामी ॥
ॐ ह्री श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र अत्र अवतर अतवर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभ जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् ।
पुष्पांजलि क्षिपामि