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जैन पूजांजलि
जीव स्वयं ही कर्म बांधता कर्म स्वयं फल देता है। जीव स्वयं पुरुषार्थ शक्ति से कर्म बंध हर लेता है।
मल्लिनाथ की महिमा गाऊँ मोह मल्ल को चूर करूं। मुनिसुव्रत को नित प्रति ध्याऊँ दोष अठारह दूर करूं ॥ नमि जिनेश को नमन करूं मैं निज परणति में रमण करूं। नेमिनाथ का नित्य ध्यान घर भाव-शुभाशुभ शमन करूं। पार्श्वनाथ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर भव भार हरू। महावीर के पथ पर चलकर मैं भव सागर पार करूं । चौबीसों तीर्थङ्कर प्रभु का भाव सहित गुणगान करू। तुम समान निज पद पाने को शुद्धातम का ध्यान करू॥ ॐ ह्रीं श्री वृषादि वीरांतेभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्घम् नि० स्वाहा ।
श्री चौबीस जिनेश के चरण कमल उर धार । मन, वच, तन जो पूजते वे होते भव पार ॥
__ इत्याशीर्वादः ॐ ह्रीं श्री चतुर्विणति तीर्थङ्करेभ्यो नमः
जाप्य
श्री ऋषभदेव पूजन जय प्रादिनाथ जिनेन्द्र जय जय प्रथम जिन तीर्थङ्करम् । जय नाभि सुत मरुदेवि नन्दन ऋषभ प्रभु जगदीश्वरम् ॥ जय जयति त्रिभुवन तिलक चूडामणि वृषभ विश्वेश्वरम् । देवाधि देव जिनेश जय जय महाप्रभु परमेश्वरत ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्र अत्र मम मन्निहितो भव भव वषट् । समकित जल दो प्रभु आदि निर्मल भाव भाव भरू। दुख जन्म मरण मिट जाय जल से धार कह ॥