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जैन पूजांजलि
चौरासी के चक्कर से बचना है तो निज ध्यान करो। नव तत्वों की श्रद्धापूर्वक स्वपर भेद विज्ञान करो।।
आत्म ज्ञान वैभव के चन्दन से भवताप नशाऊँगा। भव बाधा हर चिदानन्द चिन्मय को ज्योति जगाऊँगा ॥ वृष०
ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरातेभ्यो संसारताप विनाशनाय चन्दनम् नि । आत्म ज्ञान वैभव के अक्षत से अभय पद पाऊंगा। भव समुद्र तिर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊंगा ॥ वष० ___ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि० स्वाहा । आत्म ज्ञान वैभव के पुष्पों से मैं काम नशाऊँगा । शीलोदधि पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥ वृष०
ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि । आत्म ज्ञान वैभव के चरु ले क्षुधा व्याधि हर पाऊंगा। पूर्ण तृप्ति पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारूंगा। पर द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारूंगा ।। ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि । आत्म ज्ञान वैभव दीपक से भेद ज्ञान प्रगटाऊंगा । मोह तिमिर हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥ वृष० ___ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि । आत्म ज्ञान वैभव की निज में शुचिमय धूप चढ़ाऊंगा। अष्ट कर्म हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊंगा ॥ वृष०
ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीर तेभ्यो अष्ट कर्म विध्वसनाय धूपम् नि० । आत्म ज्ञान वैभव के फल से शुद्ध मोक्ष फल पाऊंगा। राग द्वेष हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥ वृष. ___ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० स्वाहा। प्रात्म ज्ञान वैभव का निर्मल अर्घ अपूर्व बनाऊँगा । पा अनर्घ पद चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जगाऊँगा ॥