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जैन पूजांजलि
प्राण जांय पर धर्म न जाए यह जिनकुल की रीत है। जिन आज्ञा अनुसार चले जो उसे धर्म से प्रीत है।
इन सब में अवतंस प्रादि रहते हैं चौंसठ देव प्रबल । गाते नन्दीश्वर को महिमा अरिहंतों का यश उज्ज्वल ॥ देव देवियाँ नृत्य वाद्य गीतों से करते जिन पूजन । जय ध्वनि से आकाश गजाते थिरक थिरक करते नर्तन ॥ कार्तिक फागुन अरु अषाढ़ में इन्द्रादिक सुर पाते हैं। अन्तिम आठ दिवस पूजन कर मन में अति हर्षाते हैं । दो दो पहर एक इक दिशि में पाठ पहर करते पूजन । धन्य धन्य नन्दीश्वर रचना धन्य धन्य पूजन अर्चन ॥ ढाई द्वीप तक मनुज क्षेत्र है पागे होता नहीं गमन । ढाई द्वीप से आगे तो जा सकते हैं केवल सुरगण ॥ शक्तिहीन हम इसीलिये करते हैं यहीं भाव पूजन । नन्दीश्वर की सब प्रतिमानों को है भाव सहित वन्दन । भव भव के अघ मिटें हमारे प्रात्म प्रतीति जगे मन में। शुद्ध भाव अभिवृद्धि सहज हो समकित पायें जीवन में। यही विनय है यही प्रार्थना यही भावना है भगवन । नन्दीश्वर की पूजन करके करें प्रात्मा ही का ध्यान ॥ आत्म ध्यान की महाशक्ति से वीतराग अरिहन्त बनें। घाति अघाति कर्म सब भयकर मुक्ति कंत भगवन्त बनें।
ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशासु द्वि पंचाग्जिनालयस्थ जिन प्रतिमाभ्यो पूर्णाय॑म् ।
भाव सहित नन्दीश्वर को पूजन से होता है कल्याण । स्वर्ग मोक्ष पद मिल जाता है धर्म ध्यान से सहज महान ।।
xइत्याशीर्वादः ४ जाप्य- ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर संज्ञाय नमः
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