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जैनपूजिलि
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भव बीजांकुर पैदा करने वाला, राग द्वेष हरलू । वीतराग बन साम्यभाव से, इस भव का अभाव करल ॥
सम्यक् जल को निर्मल उज्ज्वलता से जन्म जरा हरलू । मूल धर्म का सम्यक् दर्शन हे प्रभु हृदयंगम करलू ॥ तीन लोक के कृत्रिम प्रकृत्रिम चैत्यालय वंदन करलूँ । ज्ञान सूर्य को परम ज्योति पा भव सागर के दुख हरलूं ।
ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालस्थ जिन बिम्बेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक् चंदन की पावन शीतलता से भव भय हरलूँ । वस्तु स्वभाव धर्म है सम्यक् ज्ञान प्रात्मा में भरा ॥ तोन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय वंदन करलूँ । ज्ञान सूर्य को परम ज्योति पा भव सागर के दुख हरलूँ ॥
ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। सम्यक् चारित की अखंडता से अक्षय पद प्रादरलूं । साम्यभाव चारित्र धर्म पा वीतरागता को वरलूँ॥ तीन लोक...
ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।। शील स्वभावी पुष्प प्राप्त कर काम शत्रु को क्षय करलूँ । प्रणवत शिक्षावत गुणवत धर पंच महाव्रत आचरलूं ॥ तीन लोक...
ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधो कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि। संतोषामृत के चर लेकर क्षुधा व्याधि को जय करलूं । सत्य शौचतप त्याग क्षमा से भाव शुभाशुभ सब हरलूं ।तीन लोक
ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि ।