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जैन पूजांजलि
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जो व्यक्ति पंचपरमेष्ठी की शरण लेता है, उसका कल्याण होता है। जब ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता विकल्प तज शुल्क ध्यान मैं ध्याऊँगा । तब चार घातिया क्षय करके अरहन्त महापद पाऊँगा ॥ है निश्चित सिद्ध स्वपद मेरा हे प्रभु कब इसको पाऊँगा । सम्यक् पूजा फल पाने को अब निज स्वभाव में आऊंगा। अपने स्वरूप की प्राप्ति हेतु हे प्रभु मैंने को है पूजन । तब तक चरणों में ध्यान रहे जब तक न प्राप्त हो मुक्ति सदन ।
ॐ ह्रीं श्री अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु पच परमेष्ठिभ्यो अर्घम् निर्वामीति स्वाहा। हे मङ्गल रूप अमङ्गल हर मङ्गलमय मङ्गल गान करू। मङ्गल में प्रथम श्रेष्ठ मङ्गल नवकार मन्त्र का ध्यान करूं।
॥ इत्याशीर्वादः ॥ जाप्य-ॐ ह्रीं श्री अ सि. आ उ. साय नमः
-- x -- श्री विद्यमान बीस तीर्थकर पूजन सीमंधर, युगमंधर, बाहु, सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभु देव । ऋषभानन, अनन्तवीर्य, सौरी प्रभु विशाल कोति सुदेव ॥ श्री वज्रधर, चन्द्रानन् प्रभु चन्द्रबाहु, भुजङ्गम् ईश । जयति ईश्वर जयति नेमप्रभु वीरसेन महाभद्र महीश ॥ पूज्य देवयश अजितवीर्य जिन बीस जिनेश्वर परम महान । विचरण करते हैं विदेह में शाश्वत तीर्थङ्कर भगवान ॥ नहीं शक्ति जाने की स्वामी यहीं वन्दना करूं प्रभो। स्तुति पूजन अर्चन करके शुद्ध भाव उर भरू प्रभो ॥१॥
ॐ ह्रीं श्री विदेह क्षेत्र स्थित विद्यमान बीस तीर्थङ्कर जिन समूह अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ___ ॐ ह्रीं श्री विदेह क्षेत्र स्थित विद्यमान बीस तीर्थङ्कर जिन समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।