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जनपूजांगलि नरक और पशु गति के दुग्न की गही बेदना सदः अपार । म्वर्गो के. नववर मुम्ब कर भूला निज शिब मुग्व आगार ।।
करलो जिनवर की पूजन करलो जिनवर की पूजन, आई पावन घड़ी। प्राई पावन घड़ी - मन भावन पड़ी। दुर्लभ यह मानव तन पाकर, करलो जिन गुण गान । गुण अनंत सिद्धों का सुमिरण, करके बनो महान ॥ करलो० ज्ञानावरण, दर्शनावरणी, मोहनीय संतराय । आयु नाम अरु गोत्र वेदनीय, आठों कर्मनशाय ॥ करलो० धन्य धन्य सिद्धों की महिमा, नाश किया संपार। निज स्वभाव से शिव पद पाया, अनुपम अगम अपार । करलो. जड़ से भिन्न सदा तुम चेतन करो भेद विज्ञान । सम्यक् दर्शन अंगीकृत कर निज का लो पहचान ॥ करलो० रत्नत्रय की तरणी चढ़कर चलो मोक्ष के द्वार । शुद्धातम का ध्यान लगाओ हो जाओ भव पार ॥ करलो०
सिद्धों के दरबार में हमको भी बुलवालो, स्वामी, सिद्धों के दरबार में । जीवादिक सातों तत्त्वों की, सच्ची श्रद्धा हो जाए। भेद ज्ञान से हमको भी प्रभ, सम्यकदर्शन हो जाए। मिथ्यातम के कारण स्वामी, हम डूबे संसार में ।
हमको भी बुलवालो स्वामी... आत्म द्रव्य का ज्ञान करें हम, निज स्वभाव में प्राजाएँ। रत्नत्रय को नाव बैठकर, मोक्ष भवन को पा जाएँ। पर्यायों की चकाचौंध से, बहते हैं मझधार में ॥ .
हमको भी बुलवालो स्वामी...