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जैन पूजांजलि
पर परिणति का बहिष्कार कर निज परिणति का स्वागतकर।
ज्ञान मियाँ जगा हृदय में निश्चय पंच महाव्रत घर ॥ रत्न जड़ित कंचन झारी में क्षीरोदधि का जल लाऊँ। जन्म मरण भव रोग नशाऊं निज स्वभाव में रम जाऊं ॥ तेरह द्वीप चार सौ अगवन जिन चैत्यालय वंदू । इन्द्रध्वज पूजन करके प्रभु शुद्धातम को अभिनंदूं ॥ ___ॐ ह्रीं मध्यलोक तेरह द्वीप संबंधी चार सौ अट्ठावन जिनालयस्थ शाश्वत जिनबिम्वेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् नि. स्वाहा । मलयागिरि का बावन चंदन रजत कटोरी में लाऊं। भव बाधा प्राताप नाश हित निज स्वभाव में रमजाऊं ॥तेरह०
ॐ ह्रीं मध्यलोक तेरहद्वीप संवधी चार सौ अट ठावन जिनालयस्थ शाश्वत जिन बिम्बेभ्यो ससारताप विनाशनाय चन्दनम् नि० स्वाहा । उत्तम उज्वल धवल अखंडित तंदुल चरणों में लाऊ । अक्षय पद की प्राप्ति हेतु मैं निज स्वभाव में रमजाऊं ॥ तेरह०
ॐ ह्रीं मध्यलोक तेरहद्वीप संबंधी चारसी अटावन जिनालयस्थ शाश्वत जिनविम्बेभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि० स्वाहा। महा सुगंधित शोभनीय बहु पीत पुष्प लेकर आऊँ। काम भाव पर जय पाने को निज स्वभाव में रमजाऊ ॥ तेरह०
ॐ ह्रीं मध्यलोक तेरहद्वीप सबंधी चार सौ अट ठावन जिनालयस्थ शाश्वत जिन बिम्बेभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पप्पम् नि० स्वाहा। विविध भांति के भाव पूर्ण नैवेद्य रम्य लेकर आऊ । क्षुधा रोग का दोष मिटाने निज स्वभाव में रम जाऊं ॥ तेरह० ___ॐ ह्रीं मध्यलोक तेरहद्वीप संबंधी चार सौ अट ठावन जिनालयस्थ
शाश्वत जिनबिम्वेभ्यो क्षधारोग विनाशनाय नवेद्यम नि० स्वाहा। मोह तिमिर प्रज्ञान नाश करने को ज्ञान द्वीप लाऊ । मैं मनादि मिथ्यात्व नष्ट कर निज स्वभाव में रम जाऊं ॥तेरह०
ॐ ह्री मध्य लोक तेरहद्वीप संबंधी चार सौ अट ठावन जिनालयस्थ शाश्वत जिनविम्बेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि• स्वाहा ।