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जैन पूजांजलि
उषा काल में प्रात समय निज का चितन करलो चेतन ।
घड़ी दो घड़ी जितना भी हो तत्व मनन करलो चेतन ॥ भूत भविष्यत् वर्तमान को चौबीसी को नमन करूं। क्रोध लोभ मद माया हरकर मोह क्षोभ को शमन करू । __ॐ ह्रीं भूत, भविष्य वर्तमान जिन तीर्थकरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । नव पदार्थ को ज्यों का त्यों लख वस्तु तत्त्व पहचान करूं। भव आताप नशाऊँ मैं निज गुण चंदन बहुमान करूं ॥ भूत० ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान जिन तीर्थङ्करेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। षट् द्रव्यों से पूर्ण विश्व में आत्म द्रव्य का ज्ञान करूं । अक्षय पद पाने को प्रक्षत गुण से निज कल्याण करूं ॥ भूत० ___ ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान जिन तीर्थङ्करेभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् निर्वपामोति स्वाहा । जानूं मैं पंचास्ति काय को पंच महावत शील धरू । काम व्याधि का नाश करू निज प्रात्म पुष्प को सुरभि वरूं ॥भूत० ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान जिन तीर्थङ्करेभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा । शुद्ध भाव नैवेद्य ग्रहण कर क्षुधा रोग को विजय करूं । तीन लोक चौदह राजू ऊँचे में मोहित अब न फिरू ॥भूत. ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान जिन तीर्थङ्करेभ्यो अधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञान वोप की विमल ज्योति से मोह तिमिर क्षय कर मानूं । त्रिकालवर्ती सर्व द्रव्य गण पर्याय युगपत जानूं ॥ मूत. ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान तीर्थङ्करेभ्यो मोहान्धकारविनाशनायदीपनि। षट् लेश्या के भाव जानकर षट कायक रक्षा पालू । शुक्ल ध्यान की शुद्ध धूप से प्रष्ट कर्म क्षय कर डालूं ॥ ॐ ह्रीं भूत, भविष्य, वर्तमान तीर्थङ्करेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपम नि०।