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जैन पूजांजलि
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भवावर्त में कमी न भायों ऐसी भाओ भावना ।
भव अभाव के लिए मात्र निज ज्ञायक की हो साधना ॥ मलयागिर चंदन अपित कर भव का आतप हरण करूं। सम्यक ज्ञान प्राप्त कर मैं मी मोक्ष मार्ग का ग्रहण करू जिन० ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पच कल्याणकेभ्यः संसारताप विनाशनाय चन्दनम् नि । प्रक्षत से अक्षय पद पाऊँ भव सागर दुख हरण करूं। सम्यक् चारित के प्रभाव से मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूं ॥जिन० ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम नि०। सुन्दर पुष्प सुगंधित लाकर काम शत्रु मद हरण करूं। सम्यक् तप की महाशक्ति से मोक्ष मार्ग को ग्रहण करू ॥जिन० ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यः कामवाणी विध्वंसनाय पुष्पम् नि । शुभ नैवेद्य भेंट कर स्वामी क्षुधा व्याधि को हरण करूं। शुद्ध ध्यान निज के प्रताप से मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूं।जिन० ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैबेद्यम् नि । तमका नाशक दीप जलाकर मोह तिमिर को हरण करूं। निज अन्तर पालोकित करके मोक्ष मार्ग को ग्रहण करू' जिन ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो मोहांधकार विनाशनाय दीपम् नि। ध्यान अग्नि में धूप डालकर अष्ट कर्म को हरण करू। शुक्ल ध्यान की प्राप्ति हेतु मैं मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूं। जिन ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो अप्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम नि०। शुद्ध भाव फल लेकर स्वामी पाप पुण्य को हरण करू । परम मोक्ष पर पाने को मैं मोक्ष मार्ग को ग्रहण करू ॥ जिन० ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो मोक्षफल प्राप्ताय फलम् नि० । वस विधि अर्घ चढ़ाकर मैं अष्टम वसुधा को वरण करूं। निज अनर्थ पद प्राप्ति हेतु में मोक्ष मार्ग को ग्रहण करू ।