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जैन पूजांजलि
अभिषेक करते समय साक्षात अरहंत के स्पर्श जैसा भाव होता है ।
द्रव्य भाव संयममय मुनिवर श्री गुरु को मैं करूं नमन । देव शास्त्र गुरु के चरणों का बारम्बार करु पूजन ।। ॐ ह्री श्री देव शास्र गुरु समूह अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री देव शास्र गुरु समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री देव शास्र गुरु समूह अत्र मम् सन्निहितोभव भव वषट् । प्रावरण ज्ञान पर मेरे है, है नन्म मरण से सदा दुखी। जब तक मिथ्यात्व हृदय में है यह चेतन होगा नहीं सुखी ॥ ज्ञानावरणी के नाश हेतु चरणों में जल करता अर्पण । देव शास्त्र गुरु के चरणों का बारम्बार करुं पूजन ॥
ॐ ह्रीं देव शास्र गुरुभ्यो ज्ञानावरण कर्म विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । दर्शन पर जब तक छाया है संसार ताप तब तक ही है । जब तक तत्वों का ज्ञान नहीं मिथ्यात्व पाप तब तक ही है । सम्यक् श्रद्धा के चन्दन से मिट जायेगा दर्शनावरण । देव शास्त्र गुरु के चरणों का बारम्बार करूं पूजन ॥
ॐ ह्रीं श्री देव शास्र गुरुभ्यों दर्शनावरण कर्म विनाशनाय चंदनं नि० । निज स्वभाव चेतन्य प्राप्ति हित जागे उर में अन्तरबल । अक्षय सुख अनन्त का घाता वेदनीय है कर्म प्रबल ॥ अक्षत चरण चढ़ाकर प्रभुवर वेदनीय का करू दमन ।देव०।
ॐ ह्री श्री देव शास्र गुरुभ्यो वेदनीय कर्म विनाशनाय अक्षतम् नि । मोहनीय के कारण यह चेतन अनादि से भटक रहा। निज स्वभाव तज पर द्रव्यों की ममता में ही अटक रहा। मेवज्ञान की खड्ग उठाकर मोहनीय का करूं हनन ॥देव॥ ॐ ह्री देव शास्र गुरुभ्यो मोहनीय कर्म विनाशनाय पुष्पम् नि ।