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जैन पूजांजलि
संसार महामागर से समकिती पार हो जाता 1 मिथ्यामति सदा भटकता भव सागर में खो जाता ॥
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नाम कर्म का मूल मिटा नष्ट करूं मैं सर्व विभाव | भ्रम प्रज्ञान विनाश करूं मैं प्राप्तकरू निज शुद्ध स्वभाव || णमो ०
ॐ ह्रीं श्रीं पच नमस्कार मंत्राय नामकर्म नाशाय दीपम् नि० । गोत्र कर्म को दग्ध करूँ मैं कर्म प्रकृति सब करूँ अभाव । भ्रष्ट कर्म विध्वंस करूं मैं प्राप्त करू निज शुद्ध स्वभाव ॥ णमो ० ॐ ह्रीं श्री पच नमस्कार मंत्राय गोत्र कर्मनाशाय धूपम् यि० अंतराय मूलोच्छेद कर सर्व बंध का करू प्रभाव । परम मोक्ष फल पाऊँ स्वामी प्राप्त करूं निज शुद्ध स्वभाव || णमो ० ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्राय अंतराय कर्म नाशाय फलम नि० । परम भेद विज्ञान प्राप्त कर करलूं मैं संसार प्रभाव । पद न पाने को स्वामी प्राप्त करू निज शुद्ध स्वभाव ॥ णमोकार का मंत्र जपू मैं णमोकार का ध्यान करूँ । णमोकार की महाशक्ति से नाथ श्रात्म कल्याण करूं ॥ ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्राय अन पद प्राप्ताय अर्ध्यम, नि० । (जयमाला)
णमोकार जिन मंत्र का जाप करूँ दिन रात । पाप पुण्य को नाश कर पाऊँ मोक्ष प्रभात ॥ छयालीस गुण धारी स्वामी नमस्कार अरिहंतो को । अष्ट स्वगुण धारी अनंत गुण मंडित बन्दू सिद्धों को ॥ हैं छत्तीस गुणों से मूषित नमस्कार आचार्यों को हैं पच्चीस गुणों से शोभित नमस्कार उपाध्यायों को ॥ अट्ठाईस मूल गुणधारी नमस्कार सब ॐ शब्द में गमित पांचों परमेष्ठी प्रभु
मुनियों को । गुणियों की ॥