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जन पूजांजलि
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भव भय को हरने वाला सम्यकदर्शन अति पावन । शिव सुख को करने वाला सम्यवत्व परम मन भावन ।
श्रुत पंचमी पर्व शुभ उत्तम जिन श्रुत को वन्दन कर लूं। षट् खण्डागम वल जय धवल महा धवल पूजन कर लूं ।
ॐ ह्रीं श्री परम श्र त पट् खण्डागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। शुद्ध स्वानुभव का उत्तम पावन चन्दन चचित कर लू। भव दावानल के ज्वालामय अघसंताप ताप हर लू॥ श्रुत० ___ ॐ ह्रीं श्री परमधु त षट खण्डागमाय संसारताप विनाशनाय चन्दननि० शुद्ध स्वानुभव के परमोत्तम अक्षत धवल हृदय धर लू। परम शुद्ध चिद्रूप शक्ति से अनुपम अक्षय पद वर लूं ॥ श्रुत.
ॐ ह्रीं श्री परम श्रु त षट खण्डगमाय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि । शुद्ध स्वानुभव के पुष्पों से निज अन्तर सुरभित कर लू। महाशील गुण के प्रताप से मैं कन्दर्प दर्प हर लू ॥ श्रुत० ॐ ह्रीं श्री परम श्रुत पट खण्डागमायकामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् नि। शुद्ध स्वानुभव के प्रति उत्तम प्रभु नैवेद्य प्राप्त कर लू। अमल अतन्द्रिय निज स्वभाव से दुखमय क्षुधा व्याधि हरलूं ॥ श्रुत.
ॐ ह्रीं श्रीं परम श्र तपट खण्डागमाय क्षुधा रोग विनाशनायनैवेद्य मनि०। शुद्ध स्वानुभव के प्रकाशमय दीप प्रज्वलित मैं कर लू। मोह तिमिर अज्ञान नाश कर निज कैवल्य ज्योति वर लू ॥श्रत. ॐह्रीं श्री परम श्रुत पट खण्डागमाय अज्ञानान्धकार विनाशनाय दीपंनिः। शुद्ध स्वानुभव गन्ध सुरभि मय ध्यान धूप उर में भर लू। संवर सहित निर्जरा द्वारा मैं वसु कर्म नष्ट कर लू॥ श्रुत.
ॐ ह्रीं श्री परम श्रुत पट खण्डागमाय अप्ट कर्म दहनाय धूपम् नि । शुद्ध स्वानुभाव का फल पाऊँ मैं लोकाग्र शिखर वर लू। अजर अमर अविकल अविनाशी पद निर्वाण प्राप्त कर लू॥श्रत.
ॐ ह्रीं श्री परम श्रुत षट, खण्डागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलम नि० ।