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जैन पूजांजलि धर्म वही है, जो जीव को उत्तस सुख प्रदान करे।
अभिषेक पाठ मैं परम पूज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वंदन करू। मन, वचन, काय त्रियोगपूर्वक शीष चरणों में धरू । सर्वज्ञ केवल ज्ञान धारी की सु छवि उर में ध। निर्ग्रन्थ पावन वीतराग महान की जय उच्चर ॥ उज्ज्वल दिगम्बर वेश दर्शन कर हृदय आनंद महें। प्रति विनयपूर्वक नमन करके सफल यह नर भव करू ॥ मैं शुद्ध जल के कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर करूं। जल धार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभू जी का करूं। मैं न्हवन प्रभु का भाव से कर सकल भव पातक हरू। प्रभु चरण कमल पखारकर सम्यकत्व की सम्पत्ति वरू॥
अभिषेक स्तुति मैंने प्रभु के चरण पखारे।।
जनम, जनम के संचित पातक तत्क्षण ही निरवारे । प्रासुक जल के कलश श्री जिन प्रतिमा ऊपर ढारे। . .
वीतराग अरिहंत देव के गूंजे जय जयकारे ॥ चरणाम्बुज स्पर्श करत ही छाये हर्ष प्रपारे... पावन तन, मन, नयन भये सब दूर भये अंधियारे ॥
पूजा पीठिका : . . : . ॐ जय, जय, जय । नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु, . . अरिहंतों को नमस्कार है, सिद्धों को सावर बंदत। प्राचार्यों को नमस्कार है, उपाध्याय को है. वंदन ॥...
और लोक के सर्व साधुनों को है. विनय सहित वंदन । पंच परम परमेष्ठी प्रभु को बार बार मेरा वंदन ॥ ॐ ह्रीं अनादि मूल मन्त्रेभ्यो नमः पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ।
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