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जैन पूजांजलि
जिया तुम निज को पहचानो । निज स्वरूप को पर स्वरूप से सदा भिन्न जानो।
सर्व चार सौ पन्द्रह गाथाएँ प्राकृत भाषा में जान । सारभूत निज समयसार का ही अनुभव ल भव्य महान । अमृतचन्द्राचार्य देव ने आत्म ख्याति टीका लिखकर । कलश चढ़ाये दो सौ अठहत्तर स्वणिम अनुपम सुन्दर ॥ श्री जयसेनाचार्य स्वामी को तात्पर्य वृत्ति टीका । ऋषि मुनि विद्वानों ने लिक्खा वर्णन समयसार जी का ॥ ज्ञानी ध्यानी मुनियों ने भी तोरण द्वार सजाये हैं। समयसार के मधुर गीत गा वन्दनवार चढ़ाये हैं। भिन्न भिन्न भाषाओं में इसके अनुवाद हुए सुन्दर । काव्य अनेकों लिखे गये हैं समयसार जी पर मनहर ॥ श्री कानजी स्वामी ने भी करके समयसार प्रवचन । समयसार मन्दिर पर सविनय हर्षित किया ध्वजारोहण ॥ समयसार पढ़ सम्यक दर्शन ज्ञान चरित प्रगटाऊंगा। ८"तिब्बं मंद सहावं" क्षयकर, वीतराग पद पाऊँगा । पंच परावर्तन प्रभाव कर सिद्ध लोक में जाऊँगा । काल लब्धि पाई है मेरी परम मोक्ष पद पाऊँगा ॥ भक्ति भाव से समयसार को मैंने पूजन की है देव । कारण समयसार की महिमा उर में जाग उठी स्वयमेव ॥ नमः समयसाराय स्वानुभव ज्ञान चेतनामयो परम । एक शुद्ध टंकोत्कीर्ण, चिन्मात्र पूर्ण चिद्रूप स्वयम् ॥ नय पक्षों से रहित प्रात्मा ही है समयसार भगवान । समयसार ही सम्यक् दर्शन सममसार ही सम्यक् ज्ञान ॥ ॐ ह्रीं श्री परमागम समयसाराय पूर्णार्घम् नि । (८) स. सा. २८८-...बन्धन के तीव्र मन्द स्वभाव को....