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जैन पूजांजलि
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जीवन तरु आयु कर्म के बल पर ही हरियाता है।
जब आयु पूर्ण होती है तो फ्ल में मुरझाता है। नगर हस्तिनापुर के अधिपति विश्वसेन नृप परम उदार । माता ऐरा देवी के सुत शान्तिनाथ मंगल दातार । कामदेव बारहवें पंचम चक्री सोलहवें तीर्थेश । भरत क्षेत्र को पूर्ण विजयकर स्वामी आप हुए चक्रेश ॥ नभ में नाशवान बादल लख उर में जागा ज्ञान विशेष । भव भोगों से उदासीन हो ले वैराग्य हुए परमेश ॥ निज आत्मानुभूति के द्वारा वीतराग अर्हन्त हुए । मुक्त हुए सम्मेद शिखर से परम सिद्ध भगवन्त हुए । ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पच
कल्याण प्राप्ताय अर्घम नि० स्वाहा। नगर हस्तिनापुर के राजा सूर्य सेन के प्रिय नन्दन । राज दुलारे श्रीमती देवी रानी के सुत वन्दन ॥ कामदेव तेरहवें तीर्थङ्कर सतरहवें कुन्थु महान । छठे चक्रवर्ती बन पाई षट खंडों पर विजय प्रधान ॥ भौतिक वैभव त्याग मुनीश्वर बन स्वरूप में लीन हुए। भाव शुभाशुभ का प्रभाव कर शुक्ल ध्यान तल्लीन हुए। ध्यान अग्नि से कर्म दग्ध कर केवल ज्ञान स्वरूप हुए। सिद्ध हुए सम्मेद शिखर से तीन लोक के भूप हुए ॥ ॐ ह्री श्री कुन्थु नाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण
पंच कल्याण प्राप्ताय अर्घम नि० स्वाहा ।। नगर हस्तिनापुर के पति नृपराज सुदर्शन पिता महान । माता मित्रा देवी की आँखों के तारे हे भगवान । कामदेव चौदहवें सप्तम चक्री श्री अरनाथ जिनेश । अष्टादशम तीर्थङ्कर जिन परम पूज्य जिनराज महेश ॥