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________________ सम भारवर्षमा समभाव या मानसानु कन्धी , प्रथम चौधरी यानि । त्यागे जान मिल्वातानुक सौ समस्पटी मानि ॥३॥ समफित बिनु नहिं होत, शातिरूपी सम्मावा। चौथे गुण ठाणों मुकछुक, समभाव समाया। द्वितीय चौकरी बारि, सोहु मातमय भाई। माम मप्रत्यास्मान, आछौं प्रत न पाई। दोष चौमी तीन मिण्या, त्यात शेष प्रावकावती। प्रगटे गुणठाण अपंचमैं, पापनिकी परणति हसी॥३॥ पढ़ें तहां समभाव, होय रागादिक मूना। मालते गनि अंच, सायातनि ना॥ तृतीय चौकरी जानि, नाम है प्रत्याख्यानी। रोके मुनिनस पह, ठाण छडो शुमध्यानी॥ तीन चौकरी तीन मिथ्या छांडि साबू हवे संगमी । वृद्धि होय समभाई, मन इन्द्री सपही दमी ॥३॥ बोहा - चौथी संझुलना सही, रोके केवग्यान । जाके तीन उदेवकी, होय व निश्चस ध्यान (छप्पय छन्द) चौली चौकरि टरै, नाम संजुलन जवे ही। नो-पाय ना मेह, नाशि का भु सबै ही। यथासात चारित्र, सपनै गारम ठाणों। पूण समभाव, शेष जिमस्त प्रमाणों।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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