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________________ N aman जैन-क्रियाकोष। जाने निज पर भेद जो, भातमझान प्रवीन । सो स्वामी सब लोकको, सदा सांतरसलीन ॥८३॥ लखिवौ बातम भावको, सो स्वाध्याय बखानि । मुनि श्रावक दोऊनिको, यह परमारब जानि ।। ८४ ॥ अब सुनि ग्यारम तप महा, काया-सग्ग शिवदाय । कायाको उतसर्ग जा, निर्ममता ठहराय।। ८५॥ त्याग्यां बैठ्यौ देहकों, नहीं देहसों नेह । लग्यो रंग निजरूपसों, बरसै आनंद मेह ॥ ८६ ॥ छिदौ भिदौ ले जाहु कोड, प्रलय होउ निजसंग। यह काया हमरी नहीं, हम चेतन चिद मङ्ग ।। ८७॥ इहै भावना उर धरै, जल-मल लिप्त शरीर। . महारोग पीड़े तऊ, मजै न औषध धीर ॥ ८८॥ ब्याचितनों न उपायकों, शिवको करै उपाय। इन्द्री-विषय न सेवई, सेवै चेतनराय ॥८९ ॥ मयौ विरक्त जु भोगते, भोजन सजा आदि । कास्की परवा नहीं, भेटौ ब्रा अनादि ।।१०।। निजस्वरूप चितवन जग्यौ, भग्यौ भोगको भाव । लायौ चित चेतनथकी, प्रकटयौ परम प्रभाव ।।११।। शत्रु मित्र सहु सम गिने, तौं राग अरु दोष । बंध-मोक्ष रहित निज,-रूप लख्यौ गुण कोष ॥२॥ बेसरी छंद है विरकस पुरुषनिकों भाई, इह कायोतसर्ग सुखदाई। मह जे तन पोषन है लागा, तपाई नहिं भाव विरागा ॥६॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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