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(c) ॥ टेक ॥ तिनको प्रगट इन्द्र नरपति पद पुनि बिलसें शिव वाला ॥ जे०१॥ जिन मानुष भव सफल कियो है ते होवें जिन पाला ॥ जे०२॥ तिन मिथ्या भ्रम नाश कियो है तिन घट प्रगट उजाला ॥जे॥३॥ प्रभु को ध्यावत प्रभु पद पावत इन्द्र न. वावत भालो ॥ जे० ४॥ जिन निज आतम प्रगट लखो तिन परखो निज पर हाला ॥ जे० ५॥ आप तरें अरु परको तारत अति भारी भव नाला ॥ जे०६ ॥ तिन प्रः संग मानिक नहिं काटत मिथ्या विषधर काला ॥ जे० ७॥ १२३ पद-ग जत ठुमरी में चल्ती दीपचंदी॥
मोह बिधि ने घुमरिया कैसी दई। जासू स्वपर भेद बुधि बिसर गई। देक । पर अपना बत परही को ध्यावत आपगि. नत नित परही मई ॥ मोहर १॥ कबर्ड