SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८६) ज्ञान तेज उधृत नित करत सुधारस पान। निज हित हेत सुतिन के मानिक सुमिरत गुण अमलान ॥ धनि० ३ ॥ ___ १५ पद-होरी दादरा कलांगडा ।। मेरे ज्ञानी पिया घर आउरे ॥ टेक ॥ कुमति कुनारि भरम मदमाती याके पास न जाउरे ॥ मेरे० १॥ काल लब्धि ऋतुराज मांहिं यह अनुभव फाग रचाउरे॥ मेरे० २ ॥ सम्यक दग जल नय पिचकारि. न भरि २ नित छिरकाउरे ।मेरे० ॥ ज्ञान गुलाल चरित्र अर्गजा सलि मलि अंग लगा उरे। मेरे०४ ॥ समति सीख मानो पिय, मानिक फिर यह दाव न पाउरे ॥मेरे०॥ १०६ पद-होरी काफी ॥ या विधि होरी मचावे-जवे जियरासुखः पावे ॥ टेक ॥ श्रोजिन भबन मांहि साजन जुत, बहु निधि तूर बजावे ॥ ज०१॥ त--
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy