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(४) जिन मंदिर को धावो । मनुप जन्म अनि दुर्लभ पायो सा क्यों वृथा गमावा ॥टेक। या जिनेन्द्र को जजन भजन करि दुगंति वंध नसावो । के जिन आगम पठन प्रवण करि मिथ्या भाव मिदावो ॥ भवि०१॥ के जिन गुण स्तोत्र पाठकरि सकल कुभाव गमावो। कैसाधार्मिन सौं चरचा करि वि. पय कपाय घटावी ॥ भवि०२॥ हित के कारण देव धर्म गुरु ग्रंथ परखि उरलावा। कुगुरादिक नित अहित हेत लखि तिन के पास न जावी ॥ भवि० ३ ॥ जहा पोह करी वह श्रुतते चित प्रमाद छुटकावी । धरह धारना तत्वनि की निज अनुभव करि सुख पावी ॥ भवि०४॥ सप्त क्षेत्र धन खरच कथन सुनि उर आनंद उमगावी । कृन कारित अनुमोद भाव करि बहु सुन उपजावो ॥ भवि० ५॥ या कलि मांहिं ग्रही शिव