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१९ पद-गग झंझोटी॥ जाही समय मिटो भव्यन को महामोह चिर पगो करम सों ॥ टेक ॥ भेद ज्ञान रवि प्रगट भयो सुगयो मिथ्या तम हृदय सदन सों ॥ जाही० ॥ १ ॥ मोज लस्से निज परजु भिन्न ये परिचय करे शुद्ध अनुभवसों । ज्ञान विरागी शुभमति जागी चेतनता न कहे पुदगल सौं । जाहो० ॥२॥ यो प्रवीन करतूति करत नित धरत जुदाई सदा जगत सों। मानिक लखो प्रगट पात्रक ज्यों भिन्न करत है कनक उपलसों ॥जाही० ॥३॥
२० पद-राग पद ॥ तत्त्वारथ सरधानो ज्ञानी इमि सरधान धरत सक नाहीं ॥टेका सुख दुख कर्मानित जानत मानत निज में न करम परछांहीं।मैं चित पिंड अखंड ज्ञान घन जन्म मरण