________________
पांचवां अंक
(परदा उटने के पूर्व नेपथ्य से चर्या-पाठ)
ण हि निरवेक्खो चाओ ण हवदि भिक्खुस्स आसव विसुद्धी। अविसुद्धस्स य चित्ते कहं णु कम्मक्खओ विहिओ॥
(प्रवचन मार :-२०)
[अर्थात् जब तक भिक्ष द्वारा निरपेक्ष त्याग नहीं होता, तब तक
उसको चित्त-शद्धि नहीं होती और जब तक उसका चित्त शुद्ध नहीं होता तब तक उसके द्वारा कर्मों का क्षय किस प्रकार हो सकता है ? ]