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तीसरा अंक
पर पड़ जाती है तो उस बेचारे के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं ।
सिद्धार्थ : यह वास्तव में बड़ी निर्मम दृष्टि है किन्तु हमारी प्रजा पर तो ऐसा अत्याचार नहीं होता ।
वर्धमान : हमारी प्रजा पर न हो किन्तु समस्त मानवता तो हमारी प्रजा नहीं है । आज मानवता में नैतिकता का कितना ह्रास हुआ है ! सत्य जैसा रत्न उपेक्षित है और असत्य के काँच के टुकड़े मंचित किये जा रहे हैं | स्वार्थ ने परोपकार का गला दबा रखा है। दास-दासी स्वामी
सम्पत्ति हैं । यदि वे अपने स्वामी के लिए धन कमा कर नहीं लाते तो उन्हें शारीरिक यातनाएँ सहन करनी पड़ती हैं। और नारियों की दशा कितनी दयनीय है ! वे क्रीत दासियों की भाँति पतियों से लांछित हो रही हैं । विवाह के द्वारा में केवल एक नारी की रक्षा करूँगा, अविवाहित रह कर मैं समस्त नारियों की रक्षा करने में समर्थ हो सकूंगा । इसलिए केवल एक नारी का होकर क्या मेरी दृष्टि मोमिन नहीं हो जायगी ?
सिद्धार्थ : ( सोचते हुए) मैं समझता हूँ, नहीं होगी। क्या एक लहर के तट में लीन होने पर मागर में लहरों का अन्त हो जाता है ? मेरी दृष्टि में तुम्हारा व्यवहार सागर की भाँति होगा। तुम एक लहर को अपने में लीन कर असंख्य लहरों को तट तक ला सकोगे ।
वर्धमान : किन्तु पिता जी ! इसमें मेरे कर्मों का अन्न तो न होगा। मैं तपस्या द्वारा कर्म-बन्धन में मुक्त होना चाहता हूँ और यह राज भवन छोड़ने पर ही संभव हो सकेगा । प्रकृति मे मुझे बल मिलेगा। वायु की लहर जो मब स्थलों पर मंचरित होती है, मुझे विश्व-प्रेम का सन्देश देगी और उसी से मानव मात्र का कल्याण संभव होगा ।
मिद्धार्थ : तो तुम विवाह भी नहीं करोगे और राज भवन भी छोड़ दोगे ?
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