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जय वर्धमान
सुमित: तो वे फिर अपने कक्ष में होंगे। यह सत्य है, सम्राट् ! कि वे वीरतापूर्ण कार्य करके भी निस्पृह और निर्विकार बने रहते हैं । जय घोष सुनकर भी उनके ओंठों पर मुस्कान तक नहीं आई। तो हम लोग उन्हें आपकी सेवा में भेजें ?
सिद्धार्थ : हो, मैं उन्हें देखना चाहता हूँ । किन्तु इसके पूर्व इतनी शुभ सूचना देने पर अपना पुरस्कार तो लेते जाओ ।
( गले से मोतियों की माला उतारते हैं।)
विजय : इसकी आवश्यकता नहीं है, सम्राट् !
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सुमिन : हम लोग तो इतने से ही कृतार्थ हैं कि महावीर वर्धमान के साहचर्य का सौभाग्य हम लोगों को प्राप्त है ।
सिद्धार्थ : फिर भी मेरी प्रसन्नता का उपहार तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा । (सम्राट् सिद्धार्थ प्रत्येक को एक-एक माला देते हैं।)
दोनों : ( माला लेकर एक साथ) सम्राट् की जय ! वीर वर्धमान की जय ! ( प्रस्थान )
सिद्धार्थ : कितनी शुभ सूचना है ! मेरे कुमार की वीरता की ।...... ...तो कुमार वर्धमान अब महावीर वर्धमान हैं, महावीर वर्धमान ! महारानी यह जानती हैं या नहीं ? भले ही वर्धमान महावीर हैं पर उनके तो कुमार हैं। उन्हें कुमार की वीरता की सूचना दूं । ( पुकार कर ) प्रतिहारी !
( प्रतिहारी का प्रवेश )
प्रतिहारी : ( सिर झुका कर) सम्राट् की जय !
सिद्धार्थ : प्रतिहारी ! महारानी त्रिशला को यहाँ आने की सूचना दो । प्रतिहारी : जो आज्ञा । (प्रस्थान )